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Showing posts from June, 2020

कपड़े ढ़ूंढने में नहीं करना है टाइम वेस्ट, तो इन टिप्स के साथ करें अपना वॉडरोब सेट

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कुछ लोगों के पास भले ही कितने भी कपड़े क्यों न हों, लेकिन ऑफिस में वे दिखते हमेशा पुराने कपड़ों में ही हैं। दरअसल उनकी समस्या कपड़ों की कमी नहीं बल्कि अव्यवस्थित वॉर्डरॉब होती है। ऐसे लोगों का वॉर्डरोब हमेशा बिखरा रहता है। उन्हें पता ही नहीं होता कि कौन-सी चीज़ कहां रखी है और किसी भी मौके के लिए तैयार होते समय बिखरे हुए सामान में कपड़े ढूंढऩा उनके लिए संभव नहीं होता। तो छुट्टी वाले दिन अपने वॉर्डरॉब को ठीक से ऑर्गेनाइज करने का वक्त निकालें। यहां दिए जा रहे टिप्स वॉर्डरोब को व्यवस्थित रखने में आपकी मदद कर सकते हैं। 1 . सबसे पहले वॉर्डरोब में थोड़ी जगह बनाएं। जगह बनाने का मतलब है कि इसमें कुछ हुक, रॉड, हैंगर और ड्राअर्स का इस्तेमाल कर 2 . रॉड पर हैंगर की मदद से साड़ी, पैंट और कोट आदि हैंग करें। स्त्रियां अपनी चूडिय़ां भी हैंगर में लटका सकती हैं। 3. परयूम, क्रीम, जेल, लोशन, फेसवॉश और स्क्रब आदि रखने के लिए वॉर्डरोब में दिए कुछ अन्य छोटे ड्राअर्स का इस्तेमाल करें। इसी जगह पर घड़ी, सॉक्स, ज्यूलरी और रुमाल भी रखें। 4 . शट्र्स को तह करके सामने वाले खाने में रखें। ध्यान रहे कि सभी शट्र्स को अलग...

गिलोय का जूस दिन में कितनी बार पीना है सही?

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नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Giloy For Immunity:  जब से दुनियाभर में कोरोना वायरस का कहर शुरू हुआ है, तब से सभी के लिए अपनी इम्यूनिटी को मज़बूत बनाना सबसे ज़रूर हो गया है। क्योंकि इस वक्त कोविड-19 की वैक्सीन या इलाज मौजूद नहीं है इसलिए सभी के लिए अब इम्यूनिटी को मज़बूत बनाना ज़रूरी हो गया है। वैसे तो कई चीज़ें हैं, जो शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ावा देती हैं, लेकिन आयुर्वेद में गिलोय को किसी वरदान से कम नहीं माना गया है।  संस्कृत में गिलोय को अमृत माना गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें अद्भुत औषधीय गुण पाए जाते हैं। इस जड़ीबूटी का अगर नियमित रूप से सेवन किया जाए, तो ये स्वास्थ्य के लिए चमत्कार कर सकती है। गिलोय की जड़ और डंठल, दोनों में औषधीय गुण होते हैं। यह औषधि एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होती है, जो शरीर को कई बीमारियों से लड़ने की ताकत देती है। साथ ही ये शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर करती है और खून को साफ करती है। गिलोय को जूस या फिर टैबलेट के ज़रिए लिया जा सकता है।

परती पर भविष्य उपजाने की जिद, गांवों में ही स्‍वरोजगार की तैयारी

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देहरादून, जेएनएन।   बीते वर्षों में उत्तराखंड ने पलायन का दंश झेला। हाल के वर्षों में करीब तीन हजार गांव पूरी तरह मानवविहीन हो चुके थे। जबकि सैकड़ों गांवों की आबादी 50 फीसद रह गई। पलायन करने वाले करीब दो लाख लोग कोरोना काल में लौट आए हैं। जिन हालात में ये पलायन को विवश हुए थे, हालात अब भी वही हैं। कठिन भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण पहाड़ी, पथरीली, उबड़खाबड़, परती जमीन, ऊपर से बुनियादी सुविधाओं का अभाव। किंतु अब इन्हीं प्रतिकूलताओं को मात देकर परती पर भविष्य उपजाने में जुट गए हैं। सफल होंगे, तो इनका पुरुषार्थ अमर हो जाएगा और आने वाली पीढ़ियां इनका गौरवगान करेंगी। तब कोई भी यहां से पलायन को बाध्य नहीं होगा। पढ़े और शेयर करें    देहरादून से केदार दत्त   और   अल्मोड़ा से दीप सिंह बोरा   की रिपोर्ट। जिन हालात में लाखों लोग उत्तराखंड से पलायन को विवश हुए थे, हालात अब भी वही हैं। कठिन भौगोलिक क्षेत्र होने के कारण पहाड़ी, पथरीली, परती जमीन और बुनियादी सुविधाओं का अभाव। किंतु अब इन्हीं प्रतिकूलताओं को मात देकर परती पर भविष्य उपजाने में जुट गए हैं। उत्तरकाशी जिले के थ...

अवध की अमराई से रुखसत होंगे 'नवाब', जल्द ही मिल सकता है नाम- शासन स्तर पर मंथन जारी

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लखनऊ [पवन तिवारी]।  अवध में नवाबी नहीं रही। ठीक वैसे, आम की 'नवाबी' भी खत्म होने वाली है। लखनवी आम के खास ब्रांडनेम नवाब के दिन लदने वाले हैं। जल्द ही इसका नाम बदल सकता है। नया ब्रांडनेम क्या होगा? यह तय होना बाकी है। शासन स्तर पर इस पर मंथन चल रहा है। आम उत्पादकों, बागवानों के साथ वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक भी हो चुकी है। बागवानों से नए नाम के लिए प्रस्ताव मांगे गए हैं। कुछ किसानों ने ये प्रस्ताव उपलब्ध भी करा दिए हैं।

डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर : इतिहास पथ के महायात्री

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यूं तो सृष्टि मनुष्य के रूप में नित्य - असंख्य आलेख लिखती और मिटाती है लेकिन कुछ आलेख, आलेख नहीं होते वे शिला लेख होते हैं जो सृष्टि, समय के वक्ष पर लिखती है। ये शिलालेख ऐसे प्राणवान शिलालेख होते हैं जो इतिहास की निधि और भविष्य निधि की विरासत पर बन जाते हैं। देह उनके लिए गौण होती है इसलिए कि इनकी सृजन यात्रा में इनकी देह कभी बाधा नहीं बनती है। देह में रहते ये रचते हैं और देह से परे होने के बाद ये रचाव के राजपथ बन जाते हैं। स्व. विष्णु श्रीधर वाकणकर हमारी उजली विरासत के ऐसे ही उजले राजपथ हैं जो पीढ़ियों को उनके सार्थक गंतव्य तक पहुंचाने की सामर्थ्य रखते हैं। यह वर्ष डॉ. वाकणकर का जन्मशती वर्ष है। वे 4 मई 1919 को नीमच में जन्मे थे तथा 3 अप्रैल 1988 को उनका निधन हुआ। उन्होंने अपना सारा जीवन कर्मयोगी की भांति जीया। उन्होंने कला, संस्कृति और पुरातत्व को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया थाप्रसिद्ध पुरातत्वविद् डॉ. एच.डी. सांकलिया जो डेकन कॉलेज, पुणे के पुरातत्व विभाग के प्रमुख थे, के मार्गदर्शन में उन्होंने पी.एच.डी. की। यह उपाधि उन्हें सन् 1973 में पूना विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई। उन...